बादल

अपनी ही राह का राहगीर हूँ मैं ,
उन पर्वतों को चूमते बादल की तरह
जो कभी घंटों धरती को निहारते,
बंजर मैदानों में थोड़े मेहरबाँ होते
कभी नदियों से रुक कर बातें करते
तो कभी बैठे खेतों से गप्पें लड़ाते
कभी कभी अपने बूँदों की लड़ियों से,
गाँव के किसानों से भी रूबरू होते

जैसे लगता है कि वो सुहानी सफर के राहों पर है
जो मंजिलों को तराशता हो हर कदम पर
जैसे के कोई अल्हड़ हवा घुमती रहती हो
हर मस्त परिंदे के खूबसूरत दहलीज़ पर ।।

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